लालू जी कल वोट करने वेटेनरी कालेज पहुंचे तो उनके व्यव्हार में भी जानवरीपन सा नज़र आया। बौखलाहट , गुस्सा और कांग्रेस के ठेंगा दिखा दिए जाने की परेशानी के बीच हार जाने के खौफ से तमतमाए लालूजी मीडिया के फोटोग्राफरों / कैमेरामेनो को धक्का देने, भगाने लगे। मीडिया कर्मियों से बात तक नही की, आख़िर क्या बात है की मीडिया फ्रेंडली कहें जाने वाले लालू जी ने वोटिंग के दौरान ऐसा रूख दिखाया। फ़िर कहलवा दिया चुनाव के बाद मीडिया से बात करूँगा।
दरअसल बिहार के पत्रकारों ने १५ सालो तक वहां जंगल राज देखा है, रोजाना पटना के किसी ना किसी इलाके में किसी डॉक्टर, बिजनेसमेन, प्रोफेसर के अपहरण , मर्डर की खबरें आती थी। अपराध में बिहार कुख्यात हो चुका था। उस दौर में बिहार में पत्रकारिता करने वालो ने यहाँ जब नीतिश कुमार के सरकार को कुछ काम करता पाया तो उन्हें सुशासन बाबु का दर्जा दे दिया गया। नीतिश लोगो के साथ-साथ मीडिया की नज़रों में भी हीरो बनकर उभरे। पर बजाए इसके वे कभी कभार मीडिया के निशाने पर आए, ख़ास कर बिहार में आई बाढ़ के दौरान।
पर लालू जी तो बातों के बादशाह ठहरे कुछ भी कह दिया तो ख़बरों में आना ही है , मीडिया उनके पीछे भी लगी रहती है । पर इस बार उनका गुस्सा फ़ुट पड़ा इसकी वज़ह कई है , एक तो वो मीडिया द्वारा बनाई गई नीतिश कुमार की सुशासन बाबु की छवि , तो दूसरी तरफ़ राहुल गाँधी द्वारा नीतिश कुमार के अच्छा काम करने के बयान पर लालू जी को लगी चिढ। ऊपर से कांग्रेस का लालू जी पर तीखा वार । इन सब के साथ छपरा में राजीव प्रताप की चुनौती, ख़ुद के साथ पार्टी के हार का डर, प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिशों पर पानी फिरता हुआ देखना, साले साधू यादव की बगावत , इन सब के बीच मन का गुस्सा तो था ही पर बार-बार पत्रकार सवाल करे तो इसका गुस्सा पत्रकारों पर उत्तारने से बेहतर क्या हो सकता है।
खैर लालू जी के लिए इतना तो कहा ही जा सकता है कि सत्ता में रहते हुए अगर वे बजाए जातिगत समीकरण बनाने के, विकास का काम करते तो देश के सबसे बड़े समाजवादी नेता तो होते ही बिहार सबसे संपन राज्य होता । और अब जनता जिस तरह ठेंगे दिखा रही है सर आंखों पर बैठती।
लालू जी अब ख़ुद के गिरेबान में झांकिए और मीडिया पर गुस्सा निकालना बंद कीजिये।
दरअसल बिहार के पत्रकारों ने १५ सालो तक वहां जंगल राज देखा है, रोजाना पटना के किसी ना किसी इलाके में किसी डॉक्टर, बिजनेसमेन, प्रोफेसर के अपहरण , मर्डर की खबरें आती थी। अपराध में बिहार कुख्यात हो चुका था। उस दौर में बिहार में पत्रकारिता करने वालो ने यहाँ जब नीतिश कुमार के सरकार को कुछ काम करता पाया तो उन्हें सुशासन बाबु का दर्जा दे दिया गया। नीतिश लोगो के साथ-साथ मीडिया की नज़रों में भी हीरो बनकर उभरे। पर बजाए इसके वे कभी कभार मीडिया के निशाने पर आए, ख़ास कर बिहार में आई बाढ़ के दौरान।
पर लालू जी तो बातों के बादशाह ठहरे कुछ भी कह दिया तो ख़बरों में आना ही है , मीडिया उनके पीछे भी लगी रहती है । पर इस बार उनका गुस्सा फ़ुट पड़ा इसकी वज़ह कई है , एक तो वो मीडिया द्वारा बनाई गई नीतिश कुमार की सुशासन बाबु की छवि , तो दूसरी तरफ़ राहुल गाँधी द्वारा नीतिश कुमार के अच्छा काम करने के बयान पर लालू जी को लगी चिढ। ऊपर से कांग्रेस का लालू जी पर तीखा वार । इन सब के साथ छपरा में राजीव प्रताप की चुनौती, ख़ुद के साथ पार्टी के हार का डर, प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिशों पर पानी फिरता हुआ देखना, साले साधू यादव की बगावत , इन सब के बीच मन का गुस्सा तो था ही पर बार-बार पत्रकार सवाल करे तो इसका गुस्सा पत्रकारों पर उत्तारने से बेहतर क्या हो सकता है।
खैर लालू जी के लिए इतना तो कहा ही जा सकता है कि सत्ता में रहते हुए अगर वे बजाए जातिगत समीकरण बनाने के, विकास का काम करते तो देश के सबसे बड़े समाजवादी नेता तो होते ही बिहार सबसे संपन राज्य होता । और अब जनता जिस तरह ठेंगे दिखा रही है सर आंखों पर बैठती।
लालू जी अब ख़ुद के गिरेबान में झांकिए और मीडिया पर गुस्सा निकालना बंद कीजिये।
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