Wednesday, December 17, 2008

जूते की महिमा अपरम्पार...

भई
मिसाइल, गोली बन्दूक जैसे हथियारों का निशाना भले ही चुक जाए पर जूते का निशाना
हमेशा सटीक बैठता है, चोट शरीर पर लगे ना लगे प्रतिष्टा पर आंच जरुर ही आता है।
जूते ने अपना कमाल दिखाया है, जूते की बदौलत ही एक टीवी पत्रकार दुनिया में हीरो बन गया। सोचता हूँ मेरे जैसे कितने ही टीवी पत्रकारों के जूते रोज रोज फोकटिया न्यूज़ के चक्कर में घिस रहे हैं, कम से कम मैं तो किसी को अपने आठ नम्बर के जूते की फटी सोल से इज्जत दूँ। मानता हूँ मुझे अंकल सैम ना मिले पर हमारे अगल बगल भी तो कितने मामू लोग बैठे हैं । बल्कि ये मामू तो और भी सुलभ हैं कदम कदम पर मिल जाते हैं । आज कल मामू लोग आतंकवाद के खिलाफ मुहीम चला रहे हैं, जनता की सुरक्षा की चिंता इन्हे खाए जा रही है, वैसे वे जनता का बहुत कुछ जनवादी और जनसेवक होने की वज़ह से खा चुके हैं। मामू भी सुरक्षित रहे इसके लिए उनकी सुरक्षा भी बढ़नी जरुरी है,प्लस -बी प्लस और सी प्लस से काम नही चलेगा कम से कम जेड प्लस और कुछ कमांडो तो जरुरी है खैर भाई ये सब तो उनका हक़ है। पर हमारा भी हो फ़र्ज़ बनता है ना की मामू की इस सेवा का कुछ तो अदा करे जैदी से थोडी सीख मिली सोच रहा हूँ मामू को भी जूते की महिमा से परिचित कराया जाए।

आप भी सोचिये नही ये सही वक्त है...चलिए मामू लोग का फ़र्ज़ निभा दिया जाए।

Tuesday, December 9, 2008

कुछ ख्वाब अधूरे से....

हम जिससे बारे में सोचते हैं , जिसे चाहते हैं उसकी याद हमेशा हमारे साथ होती है । कई बार सुबह-सुबह उसका ख्वाबों में आना हमें खूबसूरत एहसास से भर जाता है, लेकिन इन ख्वाबों का अधुरा रहना सालता भी है।
सुबह का वक्त है, चारो ओर हल्का अँधेरा रहा होगा। हलकी ठण्ड से शरीर कंपकपा रहा है, नींद में ही मैं अपनी रजाई से अपने मुँह को ढँक लेता हूँ।थोडी देर बाद एक ख्वाब की दस्तक होती है , एक ऐसा ख्वाब कि जो मेरी जिन्दगी का सबसे सुनहरा ख्वाब है।उसे सिर्फ़ ख्वाब ही क्यूँ कहूँ शायद जिन्दगी में उससे बड़ी चाहत मेरे लिए कुछ और नहीं। आधी नींद में हूँ पर दिल कह रहा है अभी मेरे साथ जिसके होने का एहसास है वो अब मेरे साथ है , हमेशा हमेशा के लिए मेरे साथ। दिल कि धड़कन उसके पास होने के एहसास भर से ही तेज़ हो रही है, ख्वाब के भीतर ही मैं कई और ख्वाब बुन रहा हूँ। पर ये क्या एकाएक कोई जोर जोर से मेरे नाम से पुकारने लगा...."भाई उठो उठो ... कितनी देर सोओगे अब उठ भी जाओ , सूरज निकल आया और ज़नाब अभी तक सो रहे हैं , ऑफिस नही जाना क्या" । दिलो-दिमाग में खूबसूरत एहसास लिए अनमने ढंग से मैं आँखें मलता उठ गया , ये सोचता हुआ कि थोडी देर बाद ही भाई उठाने आता तो क्या हो जाता , कम से कम मेरे ख्वाब तो अधूरे ना रहते। अब मेरी सबसे बड़ी चाहत एक बार फिर मुझसे उतनी ही दूर हो गई जितनी कि ख्वाबों में वो मेरे पास थी। रोज़ ही मैं उससे जुड़ी कोई ख्वाब जरुर देखता हूँ पर हमेशा ये ख्वाब अधूरे ही रह जाते हैं। क्यूंकि हर रोज़ ये ख्वाब तब ही टूट जाते हैं जब इन्हे पुरा होना होता है।

Wednesday, December 3, 2008

हम कैसे लोगो को चुनते है भाई......

अभी पुरे देश में जनता नेताओ को गालिया दे रही है। आतंकियों की ही तरह नफरत वैसे नेताओ के प्रति भी है जो संकट की इस घड़ी में भी अपनी वोट बैंक और सियासत में नफा नुकसान को लेकर राजनीति करते रहे। लेकिन हम सभी को एक सवाल अपनी अंतरात्मा से भी करनी चाहिए की इन नेताओ को नेता बनाता कौन, अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए हम कौन सा मापदंड तय करते हैं?
नेता को 'ने' मतलब- नेतृत्व और 'ता' मतलब - ताकत जनता जनार्दन से ही मिलती है ऐसे में अगर हम ग़लत लोगो को चुनते हैं तो उन लोगो से कुछ बेहतर करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। चुनाव के दिन तथाकथित पढ़े लिखे लोग वोट करने नही जाते, उन्हें लम्बी कतारों में आमजनों के साथ खड़ा होना नही भाता। पर यही बुद्धिजीवी बाद में देश के हर मुद्दे पर बड़ी बड़ी बातें करते है। युवा देश की तस्वीर बदलने की ताकत रखता है, कहते भी हैं जिस ओर युवा चलता है उस ओर ज़माना चलता है, लेकिन युवाओं की फौज कभी पेट्रोल तो कभी दारू के चक्कर में धन्धेबाज़ नेताओ के आगे पीछे घुमती नज़र आती है। अलग-अलग दलों के चुनावी रैलियों में कई बार सामान समर्थक नारे लगते नज़र आते हैं, पैसे पर जनता की भीड़ जुटाई जाती है। अब जब जनता ही अपने अधिकारों के प्रति सजग नही होगी तो भला नेताओ से उम्मीद कैसे की जा सकती है ।
हम जिसे नेता चुनते हैं उसके चल चरित्र को समझना अत्यन्त ही जरुरी है । हम वोट करे तो उन्हें करे जो जाति,धर्म, क्षेत्र , भाषा के मुद्दे पर हमे उलझाय ना रख कर हिंदुस्तान को सुदृढ़ और विकसित करने का विजन रखे॥
पर इसके लिए हमे ख़ुद को बदलना होगा....
एक उम्मीद के साथ..आप का साथी...
Related Posts with Thumbnails