Wednesday, October 29, 2008

रंग दे बसंती

राहुल राज के साथ मुंबई में जो कुछ हुआ वह मुझे एक फ़िल्म रंग दे बसंती की याद दिला गया। राहुल का मकसद किसी को मरना नही था । वो अपनी बात मुंबई पुलिस के सामने रखना चाहता था। माना राहुल ने तरीका ग़लत अपनाया लेकिन किसी मजबूर और अकेले इंसान की बात आज सुनता कौन है, ऐसे में यदि कोई राहुल या रंग दे बसंती के डीजे की तरह उग्र हो जाए तो ये गलत नही । आख़िर ऐसा ही तरीका तो भगत सिंह ने भी अपनाया था , खैर जैसा फ़िल्म में डीजे और उसके साथियों के साथ हुआ वही राहुल के साथ मुंबई पुलिस ने किया। लेकिन ना तो फ़िल्म का डीजे अपनी बात रख पाया था और ना ही असल जिन्दगी का राहुल अपनी बात रख पाया । दोनों की मिली मौत ......
संभव है फिल्मी डीजे की तरह राहुल की भी मौत राजनेताओ के इशारे पर ही की गई हो....
पर ज़रा सोचिए जिस तरह महारास्ट्र के गृहमंत्री और सामना ने राहुल को बिहारी गुंडा कहा , वो सही था ?
गुंडा तो वे लोग हैं जो महारास्ट्र में हिंसा को हवा दे रहे हैं।

Friday, October 24, 2008

ठाकरे चटनी बनाने की विधि

राजनीति की चाशनी में हिंसा का ज़हर मिलाये।
फिर वेबकूफों के समूह को मिलाकर थोड़ा थोड़ा हिलाए।
जो बच जाए उसे ठोक -ठाक ठाकरे से मिलाकर धुप में सुखाएं ।
दंगा, कतल, मारपीट सब एक थाली में सजाएँ।
ऊपर से थोड़ा महारास्ट्र सरकार को मिलाएं।
फिर चटखारे लगाकर ठाकरे की चटनी खाए।

( पत्रकार मित्र धीरेन्द्र पांडे की प्रस्तुति )

Monday, October 20, 2008

थम गई पवन की साँस

नाम -पवन
पेशा- विद्यार्थी
पता-नूरसराय, नालंदा , बिहार।
दोष-अपने अच्छे भविष्य की चाहत में रेलवे भर्ती की परीक्षा देने मुंबई गया
सज़ा- मौत
ज़रा सोचिए ,क्या पवन ने उतना बड़ा गुनाह किया था जिसकी सज़ा उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

होश में रहो ठाकरे

राज तुमने गुंडागर्दी की हद पार कर दी है। ऐसा लगता है तुम्हे उत्तर भारतीय की प्रतिभा सताने लगी है। अरे ठाकरे प्रतिभा का ज़बाब प्रतिभा से दो ना... अगर हम भी तुम्हारी तरह मारपीट पर उत्तारु हो जाए तो तुम्हे दफ़न के लिए दो गज ज़मीं भी ना मिले। पर हम तुम्हारी तरह कायर नही हैं। जिन्ना ने पाकिस्तान को बांटा और तुम हमारे हिंदुस्तान को बाँटने की साजिश करते हो, वो भी सिर्फ़ चंद वोटो के लिए। हिम्मत है तो गरीब मराठी किसान जो भूखे मर रहे है, आत्महत्या करने को मजबूर हैं, उनकी मदद करो... तुम्हे काफी वोट मिलेंगे ।
चंद गुंडों को साथ मिलकर पार्टी बना लेने से कोई नेता नहीं बन जाता... नेता बनने के लिए मर्द बनो इंसान बनो... देश को बाँटने की साजिश बंद करो।

Friday, October 10, 2008

जाने क्या होगा रामा रे

स्कूल में पढता था तो बड़ा ही मस्तमौला था। कोई चिंता नही होती थी। जम के खेलता , तीन- चार घंटे पढता । बाकि वक्त में टीवी देखता । पर तब मैंने ये सोचा भी ना था की टीवी देखने का शौक मुझे पत्रकारिता की दुनिया में खीच लायेगा। तब में दुसरे बच्चो की तरह डॉक्टर , इंजिनियर बनने का खवाब बुनता था। लेकिन पत्रकारिता भी तब एक कोने में स्थान बनाने लगी । स्नातक के बाद मैंने ठान लिया की पत्रकारिता ही करूँगा । फिर क्या था मॉस कॉम किया । बाद में टी वी पत्रकारिता से जुड़ गया , पर अब महसूस होता है मैंने गलती की है । क्यूंकि यहाँ ना तो बेहतर कैरियर है , और ना ही सकून की जिन्दगी।
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