Wednesday, December 17, 2008

जूते की महिमा अपरम्पार...

भई
मिसाइल, गोली बन्दूक जैसे हथियारों का निशाना भले ही चुक जाए पर जूते का निशाना
हमेशा सटीक बैठता है, चोट शरीर पर लगे ना लगे प्रतिष्टा पर आंच जरुर ही आता है।
जूते ने अपना कमाल दिखाया है, जूते की बदौलत ही एक टीवी पत्रकार दुनिया में हीरो बन गया। सोचता हूँ मेरे जैसे कितने ही टीवी पत्रकारों के जूते रोज रोज फोकटिया न्यूज़ के चक्कर में घिस रहे हैं, कम से कम मैं तो किसी को अपने आठ नम्बर के जूते की फटी सोल से इज्जत दूँ। मानता हूँ मुझे अंकल सैम ना मिले पर हमारे अगल बगल भी तो कितने मामू लोग बैठे हैं । बल्कि ये मामू तो और भी सुलभ हैं कदम कदम पर मिल जाते हैं । आज कल मामू लोग आतंकवाद के खिलाफ मुहीम चला रहे हैं, जनता की सुरक्षा की चिंता इन्हे खाए जा रही है, वैसे वे जनता का बहुत कुछ जनवादी और जनसेवक होने की वज़ह से खा चुके हैं। मामू भी सुरक्षित रहे इसके लिए उनकी सुरक्षा भी बढ़नी जरुरी है,प्लस -बी प्लस और सी प्लस से काम नही चलेगा कम से कम जेड प्लस और कुछ कमांडो तो जरुरी है खैर भाई ये सब तो उनका हक़ है। पर हमारा भी हो फ़र्ज़ बनता है ना की मामू की इस सेवा का कुछ तो अदा करे जैदी से थोडी सीख मिली सोच रहा हूँ मामू को भी जूते की महिमा से परिचित कराया जाए।

आप भी सोचिये नही ये सही वक्त है...चलिए मामू लोग का फ़र्ज़ निभा दिया जाए।

Tuesday, December 9, 2008

कुछ ख्वाब अधूरे से....

हम जिससे बारे में सोचते हैं , जिसे चाहते हैं उसकी याद हमेशा हमारे साथ होती है । कई बार सुबह-सुबह उसका ख्वाबों में आना हमें खूबसूरत एहसास से भर जाता है, लेकिन इन ख्वाबों का अधुरा रहना सालता भी है।
सुबह का वक्त है, चारो ओर हल्का अँधेरा रहा होगा। हलकी ठण्ड से शरीर कंपकपा रहा है, नींद में ही मैं अपनी रजाई से अपने मुँह को ढँक लेता हूँ।थोडी देर बाद एक ख्वाब की दस्तक होती है , एक ऐसा ख्वाब कि जो मेरी जिन्दगी का सबसे सुनहरा ख्वाब है।उसे सिर्फ़ ख्वाब ही क्यूँ कहूँ शायद जिन्दगी में उससे बड़ी चाहत मेरे लिए कुछ और नहीं। आधी नींद में हूँ पर दिल कह रहा है अभी मेरे साथ जिसके होने का एहसास है वो अब मेरे साथ है , हमेशा हमेशा के लिए मेरे साथ। दिल कि धड़कन उसके पास होने के एहसास भर से ही तेज़ हो रही है, ख्वाब के भीतर ही मैं कई और ख्वाब बुन रहा हूँ। पर ये क्या एकाएक कोई जोर जोर से मेरे नाम से पुकारने लगा...."भाई उठो उठो ... कितनी देर सोओगे अब उठ भी जाओ , सूरज निकल आया और ज़नाब अभी तक सो रहे हैं , ऑफिस नही जाना क्या" । दिलो-दिमाग में खूबसूरत एहसास लिए अनमने ढंग से मैं आँखें मलता उठ गया , ये सोचता हुआ कि थोडी देर बाद ही भाई उठाने आता तो क्या हो जाता , कम से कम मेरे ख्वाब तो अधूरे ना रहते। अब मेरी सबसे बड़ी चाहत एक बार फिर मुझसे उतनी ही दूर हो गई जितनी कि ख्वाबों में वो मेरे पास थी। रोज़ ही मैं उससे जुड़ी कोई ख्वाब जरुर देखता हूँ पर हमेशा ये ख्वाब अधूरे ही रह जाते हैं। क्यूंकि हर रोज़ ये ख्वाब तब ही टूट जाते हैं जब इन्हे पुरा होना होता है।

Wednesday, December 3, 2008

हम कैसे लोगो को चुनते है भाई......

अभी पुरे देश में जनता नेताओ को गालिया दे रही है। आतंकियों की ही तरह नफरत वैसे नेताओ के प्रति भी है जो संकट की इस घड़ी में भी अपनी वोट बैंक और सियासत में नफा नुकसान को लेकर राजनीति करते रहे। लेकिन हम सभी को एक सवाल अपनी अंतरात्मा से भी करनी चाहिए की इन नेताओ को नेता बनाता कौन, अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए हम कौन सा मापदंड तय करते हैं?
नेता को 'ने' मतलब- नेतृत्व और 'ता' मतलब - ताकत जनता जनार्दन से ही मिलती है ऐसे में अगर हम ग़लत लोगो को चुनते हैं तो उन लोगो से कुछ बेहतर करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। चुनाव के दिन तथाकथित पढ़े लिखे लोग वोट करने नही जाते, उन्हें लम्बी कतारों में आमजनों के साथ खड़ा होना नही भाता। पर यही बुद्धिजीवी बाद में देश के हर मुद्दे पर बड़ी बड़ी बातें करते है। युवा देश की तस्वीर बदलने की ताकत रखता है, कहते भी हैं जिस ओर युवा चलता है उस ओर ज़माना चलता है, लेकिन युवाओं की फौज कभी पेट्रोल तो कभी दारू के चक्कर में धन्धेबाज़ नेताओ के आगे पीछे घुमती नज़र आती है। अलग-अलग दलों के चुनावी रैलियों में कई बार सामान समर्थक नारे लगते नज़र आते हैं, पैसे पर जनता की भीड़ जुटाई जाती है। अब जब जनता ही अपने अधिकारों के प्रति सजग नही होगी तो भला नेताओ से उम्मीद कैसे की जा सकती है ।
हम जिसे नेता चुनते हैं उसके चल चरित्र को समझना अत्यन्त ही जरुरी है । हम वोट करे तो उन्हें करे जो जाति,धर्म, क्षेत्र , भाषा के मुद्दे पर हमे उलझाय ना रख कर हिंदुस्तान को सुदृढ़ और विकसित करने का विजन रखे॥
पर इसके लिए हमे ख़ुद को बदलना होगा....
एक उम्मीद के साथ..आप का साथी...

Friday, November 28, 2008

हम चले इस फिजा से दूर कहीं दूर.........

मयलेश के शादी की तैयारी चल रही थी, लेकिन अब बजाय विवाह गीतों के उसके घर में रोने की आवाज़ रह रह कर आती है, घर ही नही पुरा शहर गमगीन है। मलयेश मर चुका है। आतंकियों की गोली ने उसे छली कर दिया और घर का इकलौता चिराग बुझ गया। आईआईटी खड़कपुर से पढ़ाई करने के बाद मयलेश रिलायंस में काम कर रहे थे, ताज से मीटिंग कर के लौटने के क्रम में ही वे आतंकियों का निशाना बने। मौत के आगोश में जाने के पहले ही उन्होंने अपनी शादी में शामिल होने के लिए २७ तारीख को घर आने की सुचना दी थी , वो आए भी लेकिन जिन्दा नही मर कर। मलयेश की शादी उनकी प्रेमिका खुशबु से होनी थी लेकिन खुशबु और मलयेश का एक होना किस्मत को मंज़ूर ना था । आतंकियों ने बसने के पहले ही मलयेश- खुशबू की प्यारी दुनिया उजाड़ दी। ये कहानी तो मलयेश की है। उसकी मौत का गम रांचीवासियों को है लेकिन झारखण्ड सरकार की संवेदनहीनता देखिये मलयेश को अन्तिम विदाई देने या शोकाकुल परिवार को संतावना देने सरकार की ओर से कोई नही आया। हाँ औपचारिकता भर के लिए १ लाख के मुआबजे की घोषणा जरुर कर दी गई। वही मुख्यमंत्री शिबू सोरेन पत्रकारों को संबोधित करते हुए कह गए- " झारखण्ड में ताज या ओबराय जैसा होटल नही है इसलिए यहाँ आतंकी हमला नही होगा" । कहने का मतलब साफ है, मुंबई में हमले के लिए वे विकास को दोषी मानते हैं, शायद यही वज़ह है शिबू सोरेन जैसे झारखंडी नेता झारखण्ड का विकास नही करना चाहते।
लेकिन शिबू भूल गए की यहाँ आतंकी हमला करे न करे नक्सलियों ने खूब कहर बरपाया है , जितने लोग इस आतंकी हमले में नही मारे गए उससे १० गुना लोग नक्सली हमले में २ -३ सालो में मारे गए हैं। पर शिबू जैसे टुच्चे राजनीतिज्ञ इस बात को भला कैसे समझेंगे की विकास नही होने से ही नक्सली हमले हुए हैं और जहाँ तक बात आतंकी हमलो की है इसकी वज़ह सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत को कमज़ोर करना है। लेकिन नेताओ को बस राजनीतिस्वार्थ साधने से मतलब है ।
ईश्वर आतंकी हमलो में मारे गए सभी लोगो और जांबाज़ सैनिकों की आत्मा को शान्ति दे .....साथ ही नेताओं को थोडी सदबुद्धि दे ताकि वो दुःख की घड़ियों में ऐसी बहकी बहकी बातें ना करे ।

Saturday, November 22, 2008

.....आखिरी ख़त!!!

आपलोगों के लिए एक बार फ़िर चिट्ठी लाया हूँ। ये चिट्ठी लिखी गई है रामविलास द्वारा...
डीयर डिम्पू ,
डेढ़ बरस तक जो मुझसे प्यार किया , उसका शुक्रिया । आशा है पत्र मिलने तक तुमने नया प्रेमी पकड़ लिया होगा। उसके साथ अब डेटिंग पर भी जा रही होगी। हर प्रेमी को बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है। मैं भी स्ट्रगल कर रहा हूँ । प्यार के ढाई आखर कमबख्त बड़े मुश्किल से पकड़ में आते हैं। मैंने भी तुम्हे मिस करने के बाद मुहल्ले की ही शीनो पर लंगर डालना शुरू कर दिया है । प्रेम का यह मेरा चौथा प्रयास है। लेकिन इन प्रयासों ने मुझे एक सीख दी है। सोनी तुम तो जानती हो कि प्रेम शुरू करते ही कमबख्त लव लेटर लिखने पड़ते हैं। पता है न, मैंने तुम्हे कितने ख़त लिखे ? पहले के दो प्रेम पत्रों में भी लेटरबाज़ी करनी पड़ी। बड़ा झंझट है प्रेम मार्ग में। इसलिए तुम मेरे समस्त प्रेम पत्र लौटा देना। तुम्हे लिखे उन प्रेम पत्रों पर सफेदा पोत कर सोनी कि जगह शीनो लिख दूंगा । इससे मेरी मेहनत बच जायेगी। प्लीज, मेरे प्रेम पत्र लौटा देना, क्यूंकि उनकी फोटो कॉपी भी मेरे पास नही है । सोनी , तुम मेरी वह फोटो भी वापस कर देना । तुम तो जानती हो कि वही एकमात्र फोटो ऐसी है, जिसमे मैं ठीक-ठाक दिखता हूँ। वह मेरे पहले प्यार वाले दिनों कि फोटो है । बड़ी कीमती है । मेरे प्रेम पत्रों के साथ मेरी वह फोटो भी भेज देना, ताकि शीनो को भेज
हाँ , अपने प्यार कांड में डेढ़ बरस के दौरान मेरे द्वारा किए गए खर्च का हिसाब भेज रहा हूँ। आशा है, तुम शीघ्र ही इस खर्च का भुगतान कर भरपाई कर दोगी, ताकि तुम्हे भी नए प्यार के लिए मेरी ओर से एनओसी जारी हो सके और मैं भी नए प्यार पर खर्च करना शुरू कर दूँ। हिसाब इस प्रकार है: चाट पकौडी ८९५ रुपये, कोल्ड ड्रिंक्स २९३८ रुपये , स्नेक्स ५६४५ रुपये , जूस ३८४५ रुपये, फ़िल्म १२३५ रुपये , चैटिंग 1499 , मोबाइल फोन वार्ता २५४६ रुपये , पेट्रोल खर्च ४२५५ रुपये , गिफ्ट ७८५० रुपये, सकल योग ३०७०८ रुपये ( अक्षर में तीस हज़ार सात सौ आठ रुपये मात्र )। कृपया, ये रुपये मुझे शीघ्र भेजने की कृपा करना, ताकि मैं अपने शीनो के प्यार में इन रुपयों को कुर्बान कर सकूं। और हाँ यदि तुम्हारे पास मेरे द्वारा दिए गए गिफ्ट पड़े हो तो , उन्हें भी मैं आधी दाम पर खरीदने को तैयार हूँ। तुम उनका हिसाब बनाकर मेरी मूल रकम में से काटकर पुराने गिफ्टों में से भी भेज देना । इस पत्र के साथ तुम्हारे पुरे चार किलो तीन सौ ग्राम वजन के पत्रों का पुलिंदा भी संलग्न है, ताकि तुम्हे भी प्रेम पत्र लिखने में परेशानी न उठानी पड़े। तुम्हारी वह सुंदर फोटो भी मैं भेज रहा हूँ, जो तुम अपने नए प्रेमी झंडामल को दे सकती हो। तुम अपना हिसाब भी बता देना। वैसे तुम्हारा खर्च तो कुछ भी नही आया होगा। तुम हमेशा अपना पर्स भूल जाती थी । कमबख्त प्यार में लड़को की ही जेब ढीली होती है।
खैर, बीते प्रेम पर कैसा अफ़सोस , जब नया भी पधार चुका है ? आशा है, तुम मेरा हिसाब जल्दी से जल्दी साफ करके मुझे नए प्यार में कूदने में मदद दोगी।
तुम्हे सातवां प्रेम मुबारक हो।तुम्हारा छठा पूर्व प्रेमी मोती.....

Thursday, November 20, 2008

अज़ब गजब के रिश्ते .........

इन रिश्तो को क्या कहना । कब कहां और किससे बन जाए। कुछ दिन बीते हैं हाल -हाल तक 'ना उमर की सीमा हो ना जन्मो का हो बंधन' के राग अलाप कर बड़े बुजुर्गो और नौजवानों के बीच प्यार के रिश्तो पर बहस छिडी थी। खैर प्यार करने का हक सब को है चाहे वो बुजुर्ग हो या नौजवान । लेकिन कोई दादा या दादी बनने के उमर में नैन मटका करे तो ये थोड़ा अजीब लगता है। पर भई अब हमारी दुनिया में लोग रिश्तो की नई इबारत लिखने में लगे हैं।
बहुत पुरानी एक कहावत भी है रिश्ते रब बनाता है । जोडिया ऊपर वाला तय करता है । तब सवाल ये उठता है आज के आधुनिक परिवेश में ऊपर वाला भी कैसे -कैसे रिश्ते बनाने लगा है ? समलैंगिको की जमात क्या रब ही बनाता है। मर्द मर्द के पीछे भागने लगा है, औरत को औरत से ही प्यार होने लगा है। और तो और इस तरह के रिश्तो की वकालत भी लोग करने लगे हैं , ज़रा सोचिए क्या ऐसे रिश्ते सही है। ये ना सिर्फ़ प्रकृति के नियमो के खिलाफ है बल्कि मर्यादा के अनुकूल भी नही है। सिर्फ़ आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति का पिछलगू बनना हमारे लिए निहायत ही ग़लत है। अभी फ़िल्म दोस्ताना में दो लड़के सिर्फ़ इस लिए गे बनते हैं क्यूंकि उन्हें किराये पर घर चाहिए। फैशन जगत में भी कई समलैंगिक लोग हैं जो मात्र स्वार्थ के लिए ऐसे रिश्ते बनाते हैं । हाल ही में मेरठ की समलैंगिक प्रियंका- अंजू जिन्होंने अपने माँ बाप का कतल का आरोप है के पीछे भी करोडो की सम्पति का खेल है......
खैर अच्छा होगा इन रिश्तो को सही ना ठहराया जाए...
इन रिश्तो के पीछे की सच्चाई जो हो लेकिन कहीं ना कहीं स्वार्थ का भी एक खास स्थान होता है ।

Friday, November 14, 2008

वो लम्हे ......जो शायद लौट के ना आए.

हर दिन , हर पल की हमारी जिंदगी में खास अहमियत होती है। पर सबके जीवन में कोई पल ऐसा हो है, जिसकी सुनहरी यादों को हम समेट रखना चाहते है। मेरी जिन्दगी का वो लम्हा एक ठंडे हवा के झरोखे की तरह आया और तमाम जिन्दगी के लिए गर्माहट भर गया। ये वो वक्त था जब मैं मीडिया की पढ़ाई कर रहा था , नए जोश और ज़ज्बे से लबरेज़ कई साथी मिले । जल्द ही दोस्ती हुई, क्लास के बाद कॉलेज के बाहर पीपल के छाव तले हमारी पाठशाला लगती, ख़बरों में क्या दिखाया गया, दीपक चौरसिया , राजदीप सरदेसाई और ना जाने कई नाम शामिल होते जिनपर हमारी पाठशाला में चर्चा होती। राजनीतिक बहस होती । कभी- कभार क्लास की किसी लड़की से किसी से अफेयर की चुलबुली बाते भी होती। मैंभी बाहर की पाठशाला का अहम् विद्यार्थी हो चुका था। यहाँ कुछ दोस्त ऐसे बने जिन्होंने मेरे सोचने का नजरिया ही बदल दिया । खासकर अमितेश । संजीदा और शर्मीला , चरित्र का भी धनी, कम्युनिस्ट विचारधारा पर जिंदगी जीने वाला अमितेश आज दुनिया में नही है। हम दोस्तों में सबसे संजीदा इस दोस्त ने आत्महत्या कर ली। पत्रकारिता के मामले में भी अमितेश हम सभी साथियों से ज्यादा समझ रखता था। मेरी प्रेरणा का एक स्रोत वक्त से पहले ही ख़त्म हो गया।
खैर साथी तो और भी थे लेकिन काम के भवरजाल में हम ऐसे उलझे की अब उन साथियों से बात हुए भी साल बीत गए। कभी कोई कॉल कर दे तो लगता है, पीछे छुट चुका वो लम्हा प्रत्यक्ष आ खड़ा हुआ है। लेकिन ये मुमकिन नही क्यूंकि जिन्दगी के बीते लम्हे कभी लौट कर नही आते। ये बात और है की हम उसे अपने दिल की गहराई में समेट रख सकते है.....

Wednesday, November 12, 2008

सेना पर आक्षेप नही...

'मज़हब ये तो नही सिखाता' आलेख में मैंने जो लिखा इसपर सेना के धर्मांध होने की बात नही लिखी , बल्कि किसी सैनिक के मज़हबी उन्माद के रंग में रंगने पर चिंता जताई है। इसे सेना पर आक्षेप लगाने के तौर पर देखा जाना ग़लत होगा। बुद्धिजीवी पाठको से अनुरोध है, इसे अन्यथा ना ले.......

अलविदा लार्ड ऑफ द विन....

इस बार की चिट्ठी आई है ऑफ़ साइड के भगवान, सौरव चंडीदास गांगुली के नाम और लिखा है हिंदुस्तान ने।
विदाई की भावुक नमी में जीत का एक चम्मच शक्कर घुल जाये तो यही होता है। पनीली भावनायें मीठी हो जाती है और आसमां थोड़ा और झुककर पलकों पर बैठा लेने को बेताब। जी हाँ ये भारतीय क्रिकेट के महाराज की विदाई है कोई खेल नहीं। विदाई जीत के उस दादा की जो ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में पीटकर आता है। अंग्रेजों के भद्र स्टेडियम में अपने जज्बात दबाता नहीं बल्कि साथियो के चौकों और छक्कों और टीम की जीत पर टी शर्ट उतारकर हवा में लहराता है। जिसकी रहनुमाई में १४ खिलाडियो का समूह 'टीम इंडिया' हो जाती है। जो जीते गए मैचों की ऐसी झडी लगाता है की बस गिनते रह जाओ। जो 'टीम ''निकाला मिलने'' पर टूटता नहीं है। लड़ता है। समय का पहिया घूमता है और प्रिन्स ऑफ कोलकाता की टीम में वापसी होती है। भारतीय क्रिकेट का ये फाइटर शतक और दोहरे शतक के साथ सलामी देता है।
करीब डेढ़ दशक तक खेल प्रेमियों के दिलोदिमाग पर दादागिरी करने वाले बंगाल टाइगर ने भारतीय क्रिकेट की कमान उस वक़्त संभाली जब हर तरफ अँधेरा था। राह नहीं सूझ रही थी। ये लार्ड ऑफ द विन भारतीय क्रिकेट के सव्यसाची थे । जिन्होंने टीम ही नहीं खेलभावना को पराजय और अवसाद के अंधेरो से बहार निकाल कर बड़े बड़े मैदान में विजय पताका फहरायी। निराशयों के बीच आशा की नई किरण तलाशने की सीख सौरव ने ही टीम इंडिया को दी।
सौरव गांगुली का आना , उसका होना, और उसका जाना हमारे जेहन में हमेशा तरोताजा रहेगा। भारतीय क्रिकेट के परिवर्तन के सूत्रधार के रूप में सौरव सदा याद किये जाएँगे।
इस ग्रेट वारियर को खिलाडी के तौर पर अंतिम सैल्यूट..... ।
धन्यवाद....

Friday, November 7, 2008

मज़हब ये तो नहीं सिखाता ?


ये चिट्ठी हमारे आवाम के नाम है। हाल ही में साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी मालेगांव बिस्फोट के मामले में की गई है , सेना के कर्नल पुरोहित भी इसी मामले में पकड़े गए हैं, अब ये वक्त कुछ सोचने का है। हमसब को धर्म के नाम पर होने वाले इन तमाम बखेडो को समझना होगा...

कुछ दिनों पहले की बात है, देश के किसी भी शहर में धमाके होने पर किसी कट्टर मुस्लिम संगठन का नाम आता था , तब मुस्लिमों को तो मानो पुरे विश्व में ही आतंकवादी माना जाने लगा । पर अब लगता है मंज़र बदल चुका है। अब इस बात से किसी को इत्तेफाक नही रखना चाहिए की आतंकवाद का कोई मज़हब नही होता। क्या हिंदू क्या मुस्लिम मज़हब के नाम पर फायदे बटोरने के लिए तमाम कवायद की जाती है, यह साबित हो चुका है। विश्व हिंदू परिषद् , बजरंग दल जैसे संगठन तो पहले से ही धार्मिक कट्टरता को हवा देते रहे है, पर अब वे आतंकी वारदातों को अंजाम देने में मदद करे तो यह उनके आतिवादी रवैये का चरम है।
बहरहाल ऐसे में हमारी सेना में भी धार्मिक कट्टरता हावी होने लगे तो इससे ज्यादा दुखदायी कुछ नही हो सकता। अब तक तो सेना के सभी जवान साथ मिलकर देश के शत्रुओं के खिलाफ लड़ते रहे थे, अब तक किसी मुस्लिम सिपाही को तो देशद्रोह के आरोप में नही पकड़ा गया, किसी ने जंग के मैदान में पाकिस्तानी सेना का पक्ष नही लिया, पर हिंदू धर्मान्धता से सेना भी नही बची ।
अगर धर्म के नाम पर ऐसा होने लगा है तो भइया हम कहेंगे-------
मत बांटो हमें मज़हब के नाम पे...
मत काटो हमें मज़हब के नाम पे,
है यही मज़हब तो फिर !
इससे अच्छा छोड़ दे मज़हब , खुदा के नाम पे........
धन्यवाद .......

Wednesday, November 5, 2008

ख़ुद को बदलने का वक्त...........

हो गई है पीर, पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से अब कोई गंगा निकलनी चाहिये,
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
कवि दुष्यंत के कहे इन कथनों को अब चरितार्थ करने की जरुरत है। हमारे देश में भी अब एक आन्दोलन ,एक बदलाव की जरुरत है। हम भारतीय भले ही अपनी गंगा -जमुनी संस्कृति और साझे विरासत पर गर्व करे लेकिन आज हमारे देश में साम्प्रदायिकता हावी है। साझे विरासत पर क्षेत्रवाद हावी है। ऐसे में हम युवाओ को अमेरिकी बराक ओबामा से और अमेरिकियों से सबक लेने की जरुरत है.जहाँ राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने पहले भाषण में ओबामा ने संबोधित किया -" वी आर नॉट रेड ऑर ब्लू स्टेट्स , वी ऑल आर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका " । मतलब अमेरिका एक है। वही हमारे भारत में अभी क्षेत्रवाद भयानक रूप ले चुका है। बिहारी , बंगाली, मराठी, असामी सभी की जंग छिडी है। धर्म के नाम पर हम बंट चुके हैं। धर्म भी भयावह रूप ले चुका है, मुस्लिम और हिंदू आतंकवाद की बात की जा रही है।
ऐसे में युवाओं को ख़ुद समझना होगा क्षेत्रवाद, धर्म जैसे मुद्दों से किनारा कर भारत को एक बनाना होगा । कहते है ना -" गंगा की कसम ......यमुना की कसम , ये ताना बाना बदलेगा, तू ख़ुद तो बदल .....तू ख़ुद तो बदल तब ये ज़माना बदलेगा........

Monday, November 3, 2008

हिंदुस्तान बनाम इंडिया.....

बड़ा ही अजीब देश है हमारा। शरीर एक है और आत्मा दो । एक आत्मा इंडिया की है ,जो बड़े शहरो के मॉल , इमारतों में बसती है , दूसरी आत्मा हिंदुस्तानवां की है जो गाँव की पगडंडियो में, शहरो की तंग गलियों में रहती है। इंडिया में सभी साथ मिलके रहते हैं, वहां ना तो क्षेत्र और धर्म के नाम पर झगडा है, और ना ही भाषा की लडाई ही है। इंडिया की टीम जिसमे सिर्फ़ इंडियन हैं ना कोई बिहारी है , ना कोई यूपी वाला और ना ही कोई मराठा। चाहे वे कहीं के भी हों , किसी भाषा में बात करते हों वे हमेशा जीतते हैं। इंडियन अब चाँद पर तिरंगा फहराने की तैयारी में हैं, उनका चंद्रयान मिशन सफलता की ओर कदम बढ़ा चुका है। इंडियन बिजनेसमेन पुरे विश्व को एक मुट्ठी में कर 'वन इंडिया ' का नारा दे रहे हैं।
दूसरी ओर खड़ा है हिंदुस्तानवां जो २८ टुकडो में बँटा है।इससे भी ज्यादा अलग जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र की दीवारे हिन्दुस्तानियों ने आपस में खिंच ली है। यहाँ हिंदू , मुस्लिम , इसाई हैं । बिहारी , मराठी, असामी हैं कोई शायद ही हिन्दुस्तानी हो.....
यही वज़ह है इंडिया डेवेलप है, और हिंदुस्तान मानव विषयक सूचकांक में १२८ पायदान पर खड़ा है.....
आइये हम भी इंडिया की तरह हिंदुस्तान को एक बनाये.....

Saturday, November 1, 2008

सफर की नई शुरुआत .....

पत्रकारिता के दौर में नित्य नए आयाम गढे जाते है। आज जब टीवी के ज़रिए पल पल की ख़बर आमजनों तक पहुँच रही है। वेब जर्नलिज्म के ज़रिए ब्लोगिंग की सुबिधा से मीडिया जगत के लोग बिना किसी दबाब के अपनी बात रख रहे हैं। ऐसे में एक और ब्लॉग ' सफर ' की शुरुआत राजीव करूणानिधि ने की है। राजीव का मकसद है पत्रकारों को पत्रकारिता के निर्वहन में आने वाली परेशानियों से अवगत करना।
ज़ाहिर है बिना आप पाठकों के सपोर्ट के ये मुमकिन नही की 'सफर' का कारवां आगे बढे । अगर आप भी सफर से जुड़ना चाहे तो इसके लिए ईमेल करे - krazzyknightfilms@gmail.com
सफर पढने के लिए क्लिक करे
www.krazzyknight.blogspot.com

Wednesday, October 29, 2008

रंग दे बसंती

राहुल राज के साथ मुंबई में जो कुछ हुआ वह मुझे एक फ़िल्म रंग दे बसंती की याद दिला गया। राहुल का मकसद किसी को मरना नही था । वो अपनी बात मुंबई पुलिस के सामने रखना चाहता था। माना राहुल ने तरीका ग़लत अपनाया लेकिन किसी मजबूर और अकेले इंसान की बात आज सुनता कौन है, ऐसे में यदि कोई राहुल या रंग दे बसंती के डीजे की तरह उग्र हो जाए तो ये गलत नही । आख़िर ऐसा ही तरीका तो भगत सिंह ने भी अपनाया था , खैर जैसा फ़िल्म में डीजे और उसके साथियों के साथ हुआ वही राहुल के साथ मुंबई पुलिस ने किया। लेकिन ना तो फ़िल्म का डीजे अपनी बात रख पाया था और ना ही असल जिन्दगी का राहुल अपनी बात रख पाया । दोनों की मिली मौत ......
संभव है फिल्मी डीजे की तरह राहुल की भी मौत राजनेताओ के इशारे पर ही की गई हो....
पर ज़रा सोचिए जिस तरह महारास्ट्र के गृहमंत्री और सामना ने राहुल को बिहारी गुंडा कहा , वो सही था ?
गुंडा तो वे लोग हैं जो महारास्ट्र में हिंसा को हवा दे रहे हैं।

Friday, October 24, 2008

ठाकरे चटनी बनाने की विधि

राजनीति की चाशनी में हिंसा का ज़हर मिलाये।
फिर वेबकूफों के समूह को मिलाकर थोड़ा थोड़ा हिलाए।
जो बच जाए उसे ठोक -ठाक ठाकरे से मिलाकर धुप में सुखाएं ।
दंगा, कतल, मारपीट सब एक थाली में सजाएँ।
ऊपर से थोड़ा महारास्ट्र सरकार को मिलाएं।
फिर चटखारे लगाकर ठाकरे की चटनी खाए।

( पत्रकार मित्र धीरेन्द्र पांडे की प्रस्तुति )

Monday, October 20, 2008

थम गई पवन की साँस

नाम -पवन
पेशा- विद्यार्थी
पता-नूरसराय, नालंदा , बिहार।
दोष-अपने अच्छे भविष्य की चाहत में रेलवे भर्ती की परीक्षा देने मुंबई गया
सज़ा- मौत
ज़रा सोचिए ,क्या पवन ने उतना बड़ा गुनाह किया था जिसकी सज़ा उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

होश में रहो ठाकरे

राज तुमने गुंडागर्दी की हद पार कर दी है। ऐसा लगता है तुम्हे उत्तर भारतीय की प्रतिभा सताने लगी है। अरे ठाकरे प्रतिभा का ज़बाब प्रतिभा से दो ना... अगर हम भी तुम्हारी तरह मारपीट पर उत्तारु हो जाए तो तुम्हे दफ़न के लिए दो गज ज़मीं भी ना मिले। पर हम तुम्हारी तरह कायर नही हैं। जिन्ना ने पाकिस्तान को बांटा और तुम हमारे हिंदुस्तान को बाँटने की साजिश करते हो, वो भी सिर्फ़ चंद वोटो के लिए। हिम्मत है तो गरीब मराठी किसान जो भूखे मर रहे है, आत्महत्या करने को मजबूर हैं, उनकी मदद करो... तुम्हे काफी वोट मिलेंगे ।
चंद गुंडों को साथ मिलकर पार्टी बना लेने से कोई नेता नहीं बन जाता... नेता बनने के लिए मर्द बनो इंसान बनो... देश को बाँटने की साजिश बंद करो।

Friday, October 10, 2008

जाने क्या होगा रामा रे

स्कूल में पढता था तो बड़ा ही मस्तमौला था। कोई चिंता नही होती थी। जम के खेलता , तीन- चार घंटे पढता । बाकि वक्त में टीवी देखता । पर तब मैंने ये सोचा भी ना था की टीवी देखने का शौक मुझे पत्रकारिता की दुनिया में खीच लायेगा। तब में दुसरे बच्चो की तरह डॉक्टर , इंजिनियर बनने का खवाब बुनता था। लेकिन पत्रकारिता भी तब एक कोने में स्थान बनाने लगी । स्नातक के बाद मैंने ठान लिया की पत्रकारिता ही करूँगा । फिर क्या था मॉस कॉम किया । बाद में टी वी पत्रकारिता से जुड़ गया , पर अब महसूस होता है मैंने गलती की है । क्यूंकि यहाँ ना तो बेहतर कैरियर है , और ना ही सकून की जिन्दगी।

Friday, September 19, 2008

पोटा के खिलाफ क्यूँ

पुरे देश में आतंकी कहर बन कर बरपे हैं। अहमदाबाद , जयपुर ,सूरत, बनारस ,हैदराबाद और फिर दिल्ली उनके निशाने पर रही । बेगुनाह लोग मारे गए। हिंदू भी और मुस्लिम भी। लेकिन ऐसे में जब आतंकियों से निपटने के लिए कठोर कदम के तहत पोटा जैसे सख्त कानून को बनाने की बात आती है तो इसे मुस्लिम बिरोधी क्यूँ कहा जाता है। हमें यह समझना होगा आतंकियों से निपटने के लिए बने अब तक के कानून नाकाफी रहे हैं। ऐसे में अब सख्त कदम उठाय जाने चाहिये । जहाँ तक पोटा की बात है यह कहीं से मुस्लिम विरोधी नही है।

Wednesday, August 27, 2008

प्राइम टाइम पर गुदगुदी

खबरिया चैनल ख़बरों के मामले में कितने सीरियस हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्राइम टाइम में भी चैनलों पर गुदगुदी , आजा हस ले और गजोधर के चुटकुले दिखाए जाते हैं । ऐसा नही है कि खबरों कि कमी है , जम्मू -कश्मीर के हालत पर या बिहार के बाढ़ कि विस्तृत खबरे नही दिखाई जा रही हैं । इन खबरों के लिए बहुत हुआ तो मात्र एक पैकेज दिखा दिया जाता है , जबकि गजोधर कि हँसी पर आधे घंटे का प्रोग्राम दिखाया जाता है। वैसे तो मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है , पर सही मायने में ऐसा कहना गजोधर के चुटकुले जैसा ही है ।

Tuesday, August 26, 2008

नेता का " ता " गायब

नेता वही है जिसमे "ने " मतलब नेतृत्व और "ता " मतलब" ताकत" हो। ताकत जनता का । लेकिन झारखण्ड के नेताओ की" ता" गायब हो चुकी है । उनकी ताकत खत्म हो गई है ,पर वे अभी भी नेतृत्व करना चाहते हैं ।लगता है " ता "की खोज उनकी तभी खत्म होगी जब जनता अपने जूते का "ता " इन्हे देगी ।

Monday, August 25, 2008

आख़िर बेगाने हो गए कोडा

जिन्दगी का सफर ,
है ये कैसा
कोई समझा नहीं ,
कोई जाना नहीं ....................
झारखण्ड के निर्दलीय मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता के मज़े ले चुके मधु कोडा का यह पसंदीदा गाना है । और उनकी जिन्दगी का आइना भी । ज्यादा दिन नहीं बीते हैं , उनके साथ रहने वाले , हर मोड़ पर कोडा का साथ देने का वादा करने वाले उनके निर्दलीय साथी उनसे साथ छोड़ चुके हैं । भानु प्रताप शाही , चंद्रप्रकाश चौधरी , कमलेश सिंह ,हरिनारायण राय , जोबा मांझी सभी मौका पाकर शिबू सोरेन के साथ हों लिए ।वहीँ बंधू तिर्की और एनोस एक्का तो पहले ही शिबू परिक्रमा में लग गए थे ।
आज कोडा के साथ कोई नहीं । वज़ह सता में कोडा नहीं , फिर उनके साथिओं को उनके साथ रह कर क्या फायदा , वे तो वहीँ होते हैं जहाँ सत्ता होती है ।अब shyad कोडा gaaye -
दोस्त दोस्त ना रहा
जिन्दगी हमें तेरा aitbaar ना रहा ।

Friday, August 1, 2008

लालची शिबू , नादान मधु

झारखण्ड की जनता का भगवान ही मालिक है ।जिनके किस्मत का फैसला एक नादान मुख्यमंत्री लेते हैं , जिनके गुरूजी गुरुघंटाल शिबू सोरेन हैं। संसद में विश्वासमत के समर्थन में वोट देने के लिए उन्होंने कांग्रेस के सामने ख़ुद को कोयला मंत्री बनाने की मांग रखी लेकिन मांगे पुरी होता नही देख शिबू अब राज्य की सत्ता पर आसीन होने के सपने संजोने लगे हैं । उनकी चाहत जेऍम ऍम के विधायकों की बैठक में उभर कर आई , जब एक सुर में उनके सभी साथियों ने उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया । अब शिबू उनके ही आशीर्वाद से मुख्यमंत्री बने मधु कोडा को हटाने किम साजिश कर रहे हैं ।
ऐसे में नादान कोडा कोडा कहते हैं की वो शिबू के लिए पद छोड़ने के लिए तैयार हैं ।लेकिन उनकी परेशानी उनके चेहेरे से दिख जाती है । अमूमन शांत रहने वाले कोडा अब बार बार झुंझला कर पत्रकारों पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं ।

Monday, July 7, 2008

आख़िर भड़ास पर छपी टी वी चैनल की ख़बर

बहुत खुशी हुई की किसी ने झारखण्ड और बिहार में पत्रकारों की बदहाल स्तिथि पर भड़ास में आवाज़ उठाई , खास कर झारखण्ड में खुल रहे एक उपग्रह चैनल जो की कोलकत्ता की एक बड़ी ग्रुप द्वारा खोला जा रहा है । चैनल की बदहाल स्तिथि पर मैंने बहुत पहले लिखा था पर अब मेरी बात को जुबान मिलने लगा है । हाल ही में इस चैनल के ऐ चार हेड और सीईओ आपस में भीड़ गए । लातम जूतम हुई । सीईओ साहब की तो यहाँ मनमानी चलती ही है । इसी मनमानी के शिकार न्यूज़ एडिटर भी हुए । उन्हें भी नौकरी से हाथ गवानी पड़ी । हलाकि न्यूज़ एडिटर और ऐ चार भी दूध के धुले नही हैं । सीईओ के साथ मिलकर उन्होंने भी कईयों को बाहर का रास्ता दिखा दिया । पत्रकारिता की शुरुआत कर रहे युवाओ को धमकी भरा ईमेल भेजा गया। एक को तो न्यूज़ एडिटर ने यह भी कहा की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम कर आप रजत शर्मा नही बन जायेंगे काम करना है तो कीजिये नही तो यहाँ से जाइये । फिर कुछ दिन बाद ही उस युवा को मीटिंग में लज्जित कर निकाल दिया गया। ऐसा नही था की वह अयोग्य था , लेकिन उसकी गलती थी की उसने सीईओ की ग़लत नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी । ऐसे में जरा सोचिये उस युवा पर क्या बीती होगी ? पत्रकारिता के शुरुआत में ही मीडिया के दलालों ने उसकी मानसिकता पर क्या प्रभाव डाला होगा ?
खैर खुशी हुई की किसी ने नामी ब्लॉग "भड़ास " में इस चैनल में हो रही गतिविधिओं की जानकारी दी । इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

Friday, April 11, 2008

हाल ३६५ दिन टी वी का

बहुत ही उम्मीदों के साथ झारखण्ड में एक सॅटॅलाइट चैनल की शुरुआत होने जा रही थी । इसके लिए यहाँ दिल्ली से कुछ प्रोड्यूसर भी आ गए थे । लेकिन ३६५ दिन नाम के इस टी वी चैनल का मामला फिलहाल लटक गया लगता है । यहाँ काम कर रहे लोगों में लगभग २० से भी ज्यादा कर्मचारी पिछले ४ महीनों में सीईओ अमल जैन की ग़लत नीतिओं से नाराज होकर काम छोड चुके हैं । सुना है सीईओ ने अपने बेटे के मास्टर को अस्सिस्टेंट प्रोड्यूसर बना दिया है जिसे कंप्यूटर भी ओन् करना नही आता।

Thursday, April 10, 2008

मीडिया में कॅरिअर बनने की बात मत सोचना

समाचार पत्रों के रोजगार विषयक पन्नों में अकसर देखता हूँ , मीडिया में रोजगार के सुनहरे अवसर होने की बात लिखी जाती है । लेकिन मीडिया के फिल्ड में कितना रोजगार है , ये बात मीडिया में काम करने वाले लोग बखूबी जानते हैं । पहले मीडिया का छात्र और फ़िर एक पत्रकार होने के नाते में ये बात अच्छी तरह समझ सकता हूँ । आज मुझ जैसे नए लोगो को भटकना पड़ता है , काम मिलता भी है तो मुश्किल से । हर जगह पैरवी , पहुँच वालो की नौकरी पक्की हो जाती है योग्यता की बात करना ही वहाँ फिजूल है ।यही नही अब तो पत्रकारिता की पढ़ाई कराने वाले कई संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह खुल गए हैं , जो सालाना लाखों की कमाई करते हैं , लेकिन उनके लिए कॅरिअर के भूखे युवाओं की चिंता जरा भी मायने नही रखती । कई सपने सहेज कर मीडिया में काम करने की उम्मीद लिए इन युवाओं को झटका तब लगता है जब बायोडाटा लेकर वे मीडिया हाउस के चक्कर लगाते हैं । अब वो दिन दूर नही दिखता जब लोग इन ठगों को दौड़ा- दौड़ा कर पीटेंगे

Friday, April 4, 2008

सब तोड़ने वाले हैं

कितनी अजीब बात है १९४७ में भारत के दो टुकड़े होने के बाद भी हमने अपने इतिहास से कुछ सबक नही ली है । कभी हिंदू मुस्लिम के नाम पर तो कभी मराठा और बिहारी ,असामी -हिन्दी भाषी के नाम पर हम आमने सामने हो जाते हैं । मरने मारने पर उत्तारु हो जाते हैं । क्या कभी कोई हिन्दुस्तानी होने के बारे में सोचता है? हम साथ मिलजुल कर भारत के विकास की बात क्यों नही सोचते ? आज यह सवाल हमारे जेहन में जरुर आनी चाहिये।

Thursday, March 20, 2008

नए नवेले मीडिया पर्सन की मुसीबत

सोचा था मीडिया में आकर समाज , देश की सेवा करूँगा । समाज के नीचले तबके की बात मीडिया के माध्यम से उपर उठाऊंगा ,लेकिन ऐसा सोचना त्तब जायज़ था जब मैं जर्नलिज़म की पढ़ाई कर रहा था । उस समय हमारे सामने गाँधी , शिवपूजन सहाय , राजा राम मोहन राय जैसे पत्रकारों का प्रेरनादायी उद्धरण मौजूद था ।लेकिन आज की बजारू पत्रकारिता में ऐसा सम्भव नहीं लगता । आज मीडिया समाजसेवा का ढोंग जरुर करती है पर ख़बरों के लिहाज़ से वही दिखाया जाता है जो बिकाऊ हो । यही नही नकारात्मक ख़बर बनाने के लिए ही ज्यादा जोर दिया जाता है । ऐसे में मुझ जैसा नया नवेला पत्रकार ख़ुद में असहाय महसूस करता है और ख़ुद को माहौल में ढालने की कोशिश करता है । और जब वह अपनी कोशिश में कामयाब होता है , तब उसके भीतर का ज़ज्बा दमतोड़ चुका होता है ।

Thursday, February 21, 2008

मीडिया की मंडी

एक मीडिया पर्सन दूसरो पर हो रहे जुल्मों सितम की आवाज़ जोर शोर से उठाता है । पर मीडिया हाउस में ख़ुद पर हो रहे अत्याचार को वह चुपचाप सह लेता है । लेकिन इस चुप्पी के पीछे उसकी मज़बूरी यह नही होती की वह कमजोर इन्सान है , अब पत्रकार नौकरी करते हैं । और जो लोग नौकरी करते हैं उनकी अपनी व्यावसायिक समस्याएँ होती हैं । यही समस्या पत्रकारों के भी साथ होती है । पत्रकारिता एक पेशा है जहाँ समाज में हो रहा जुल्मोसितम बिकाऊ मसाला है । इसी लिए मीडिया हॉउस के मालिक ऐसे मामलों को तो उठाते हैं ,लेकिन पत्रकारों के साथ उनका सलूक ख़ुद ही जयादती भरा होता है ।

Wednesday, February 6, 2008

इस जगत में ऐसा ही होता है

हम बात कर रहे हैं राजनीती की ,यहाँ पल पल अपने वादों से पलटना, नित्य नए नए गठबंधन बनाना आम बात है । पर हमेशा यही होता है हर नए गठबंधन को हमारे नेता जनता के हितों के लिए की गई आपसी सहमति बताते हैं । पर अब तक हुए ऐसे समझौते या सहमति से जनता का कितना हित हुआ है यह जवाब किसी के पास भी नही । वज़ह यह है कि ये सारे गठबंधन स्वार्थ के बुनियाद पर बने हैं । नेताओं का हित जब तक पूरा हुआ गठबंधन भी बना रहा । अब ऐसा ही स्वार्थपरक गठबंधन बनाने के लिए झारखण्ड के पूर्व मुख्यमन्त्री बाबूलाल मरांडी लालायित दिख रहें हैं । ६ फरवरी को उनके द्वारा आयोजित परिवर्तन रैली का उद्देश्य भी अपने इसी नए गठबंधन को जनता के सामने लाना है । कभी सफ़ेद धोती के नीचे आर एस एस की खाकी हाफ पैंट पहनने वाले बाबूलाल आज धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का मुखौटा लगाकर समाजवादी कहे जाने वाले नेता मुलायम सिंह ,अमर सिंह के साथ राजनीतिक मंच पर आने के लिए आतुर हैं । अब देखना है उनका यह नया गठबंधन झारखण्ड और यहाँ की जनता के लिए कितना हितकारी होता है?

Monday, February 4, 2008

हाय रे राजनीती

राजनीती अब सिर्फ राज करने की नीति बन गई है । यह बात अब स्पस्ट हो गई है । केवल सत्ता पाने के लिए राजनेता बयानबाजी ही नहीं करते बल्कि देश में अलगाववाद लाने से भी परहेज़ नहीं करते । अभी अभी mumbai मैं नॉर्थ इंडियन के विरुद्ध जो गतिबिधियाँ हो रही हैं उसका गुनाहगार सिर्फ और सिर्फ राजनीती है ।
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