Friday, April 11, 2008

हाल ३६५ दिन टी वी का

बहुत ही उम्मीदों के साथ झारखण्ड में एक सॅटॅलाइट चैनल की शुरुआत होने जा रही थी । इसके लिए यहाँ दिल्ली से कुछ प्रोड्यूसर भी आ गए थे । लेकिन ३६५ दिन नाम के इस टी वी चैनल का मामला फिलहाल लटक गया लगता है । यहाँ काम कर रहे लोगों में लगभग २० से भी ज्यादा कर्मचारी पिछले ४ महीनों में सीईओ अमल जैन की ग़लत नीतिओं से नाराज होकर काम छोड चुके हैं । सुना है सीईओ ने अपने बेटे के मास्टर को अस्सिस्टेंट प्रोड्यूसर बना दिया है जिसे कंप्यूटर भी ओन् करना नही आता।

Thursday, April 10, 2008

मीडिया में कॅरिअर बनने की बात मत सोचना

समाचार पत्रों के रोजगार विषयक पन्नों में अकसर देखता हूँ , मीडिया में रोजगार के सुनहरे अवसर होने की बात लिखी जाती है । लेकिन मीडिया के फिल्ड में कितना रोजगार है , ये बात मीडिया में काम करने वाले लोग बखूबी जानते हैं । पहले मीडिया का छात्र और फ़िर एक पत्रकार होने के नाते में ये बात अच्छी तरह समझ सकता हूँ । आज मुझ जैसे नए लोगो को भटकना पड़ता है , काम मिलता भी है तो मुश्किल से । हर जगह पैरवी , पहुँच वालो की नौकरी पक्की हो जाती है योग्यता की बात करना ही वहाँ फिजूल है ।यही नही अब तो पत्रकारिता की पढ़ाई कराने वाले कई संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह खुल गए हैं , जो सालाना लाखों की कमाई करते हैं , लेकिन उनके लिए कॅरिअर के भूखे युवाओं की चिंता जरा भी मायने नही रखती । कई सपने सहेज कर मीडिया में काम करने की उम्मीद लिए इन युवाओं को झटका तब लगता है जब बायोडाटा लेकर वे मीडिया हाउस के चक्कर लगाते हैं । अब वो दिन दूर नही दिखता जब लोग इन ठगों को दौड़ा- दौड़ा कर पीटेंगे

Friday, April 4, 2008

सब तोड़ने वाले हैं

कितनी अजीब बात है १९४७ में भारत के दो टुकड़े होने के बाद भी हमने अपने इतिहास से कुछ सबक नही ली है । कभी हिंदू मुस्लिम के नाम पर तो कभी मराठा और बिहारी ,असामी -हिन्दी भाषी के नाम पर हम आमने सामने हो जाते हैं । मरने मारने पर उत्तारु हो जाते हैं । क्या कभी कोई हिन्दुस्तानी होने के बारे में सोचता है? हम साथ मिलजुल कर भारत के विकास की बात क्यों नही सोचते ? आज यह सवाल हमारे जेहन में जरुर आनी चाहिये।
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