Friday, November 28, 2008

हम चले इस फिजा से दूर कहीं दूर.........

मयलेश के शादी की तैयारी चल रही थी, लेकिन अब बजाय विवाह गीतों के उसके घर में रोने की आवाज़ रह रह कर आती है, घर ही नही पुरा शहर गमगीन है। मलयेश मर चुका है। आतंकियों की गोली ने उसे छली कर दिया और घर का इकलौता चिराग बुझ गया। आईआईटी खड़कपुर से पढ़ाई करने के बाद मयलेश रिलायंस में काम कर रहे थे, ताज से मीटिंग कर के लौटने के क्रम में ही वे आतंकियों का निशाना बने। मौत के आगोश में जाने के पहले ही उन्होंने अपनी शादी में शामिल होने के लिए २७ तारीख को घर आने की सुचना दी थी , वो आए भी लेकिन जिन्दा नही मर कर। मलयेश की शादी उनकी प्रेमिका खुशबु से होनी थी लेकिन खुशबु और मलयेश का एक होना किस्मत को मंज़ूर ना था । आतंकियों ने बसने के पहले ही मलयेश- खुशबू की प्यारी दुनिया उजाड़ दी। ये कहानी तो मलयेश की है। उसकी मौत का गम रांचीवासियों को है लेकिन झारखण्ड सरकार की संवेदनहीनता देखिये मलयेश को अन्तिम विदाई देने या शोकाकुल परिवार को संतावना देने सरकार की ओर से कोई नही आया। हाँ औपचारिकता भर के लिए १ लाख के मुआबजे की घोषणा जरुर कर दी गई। वही मुख्यमंत्री शिबू सोरेन पत्रकारों को संबोधित करते हुए कह गए- " झारखण्ड में ताज या ओबराय जैसा होटल नही है इसलिए यहाँ आतंकी हमला नही होगा" । कहने का मतलब साफ है, मुंबई में हमले के लिए वे विकास को दोषी मानते हैं, शायद यही वज़ह है शिबू सोरेन जैसे झारखंडी नेता झारखण्ड का विकास नही करना चाहते।
लेकिन शिबू भूल गए की यहाँ आतंकी हमला करे न करे नक्सलियों ने खूब कहर बरपाया है , जितने लोग इस आतंकी हमले में नही मारे गए उससे १० गुना लोग नक्सली हमले में २ -३ सालो में मारे गए हैं। पर शिबू जैसे टुच्चे राजनीतिज्ञ इस बात को भला कैसे समझेंगे की विकास नही होने से ही नक्सली हमले हुए हैं और जहाँ तक बात आतंकी हमलो की है इसकी वज़ह सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत को कमज़ोर करना है। लेकिन नेताओ को बस राजनीतिस्वार्थ साधने से मतलब है ।
ईश्वर आतंकी हमलो में मारे गए सभी लोगो और जांबाज़ सैनिकों की आत्मा को शान्ति दे .....साथ ही नेताओं को थोडी सदबुद्धि दे ताकि वो दुःख की घड़ियों में ऐसी बहकी बहकी बातें ना करे ।

5 comments:

आलोक साहिल said...

UFFF.........
ye karamjale.
bandhu aap bhi kinko sadbudhi ki baat kar rahe hain,din mein sapne mat dekhiye.
ALOK SINGH "SAHIL"

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

inko sadbudhi, mushkil hee hai. narayan narayan

समीर सृज़न said...

आपकी बातों से मैं पूरी तरह इतेफाक रखता हूँ। मुझे ये कहने में ज़रा भी गुरेज़ नहीं है की नेताओं का ये हाल सिर्फ़ झारखण्ड में ही नहीं है॥ इन नेताओं से तो पूरा मुल्क त्रस्त है। राजनीति इनके लिए तो बस वोट बैंक की तरह है...इन नेताओं का राजनीति का एक ही परिभाषा है राज के लिए कोई नीति नहीं.....

कुमार संभव said...

bhai kuch naye to nahi kaha shibu bhai ne are aap unse yea hamare jharkhandi neta SE ESSEA ACCHA KEYA UMMED KAR SAKTE HAI.

राजीव करूणानिधि said...

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है ?

जो होना था हो चूका है, ऐसा क्यों हुआ ये सोचने से अच्छा है कि हम ये विचार करें कि अब दुबारा ऐसा न हो. वैसे मेरे भाई ऐसे नेताओं से कुछ उम्मीद करना शायद बेमानी होगी.. अब हमें ही कुछ करना होगा.. आपकी लेखनी बहुत कुछ सच को दर्शाती है जो आजकल हमारे समाज में पनप रहा है..आपसे हमेशे अच्छी लेखनी की उम्मीद रहती है, लिखते रहिये....

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