सोचा था मीडिया में आकर समाज , देश की सेवा करूँगा । समाज के नीचले तबके की बात मीडिया के माध्यम से उपर उठाऊंगा ,लेकिन ऐसा सोचना त्तब जायज़ था जब मैं जर्नलिज़म की पढ़ाई कर रहा था । उस समय हमारे सामने गाँधी , शिवपूजन सहाय , राजा राम मोहन राय जैसे पत्रकारों का प्रेरनादायी उद्धरण मौजूद था ।लेकिन आज की बजारू पत्रकारिता में ऐसा सम्भव नहीं लगता । आज मीडिया समाजसेवा का ढोंग जरुर करती है पर ख़बरों के लिहाज़ से वही दिखाया जाता है जो बिकाऊ हो । यही नही नकारात्मक ख़बर बनाने के लिए ही ज्यादा जोर दिया जाता है । ऐसे में मुझ जैसा नया नवेला पत्रकार ख़ुद में असहाय महसूस करता है और ख़ुद को माहौल में ढालने की कोशिश करता है । और जब वह अपनी कोशिश में कामयाब होता है , तब उसके भीतर का ज़ज्बा दमतोड़ चुका होता है ।
1 comment:
अखिल जी, हालत इतनी भी खराब नही है, ज़रूरत हम नयी पीढ़ी के पत्रकारों को सकारात्मक सोच रखने की. हा ये ज़रूर है की आज मीडिया ख़ासकर बुद्धू बक्से की हालत ज़्यादा खराब है. मेरा मानना है की ये एक दौर है और जल्दी ही ख़तम होगा.
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