Saturday, March 13, 2010

अरे कोई चमचा समानता बिल भी पेश करो भाई


सार्वजनिक तौर आप किसी का चमचा कहलाना पसंद करते है क्या ? शायद नहीं ना. पर वक्त पडने पर किसी ना किसी की चमचई जरूर करते होगे. मै तो करता हूं. क्या आप नहीं करते क्या? पर भाई इस चमचई का सार्वजनिक प्रदर्शन अच्छा है क्या?. पर भईया अब चमचई की भी सीमा तय की जानी चाहिए. एलओसी टाइप यानी लाइन ऑफ कंट्रोल टाइप. भईया ये वहीं लाइन ऑफ कंट्रोल है जिसके लिए हर देश अपने पड़ोसी मुल्क के साथ भिड़ा रहता है.
खैर एलओसी वेलोसी की बात छोडिए, ज्यादा कम्यूनिकेटिव होते हुए या सरल भाषा में कहूं तो चमचई की सीमा तय की जानी चाहिए, जरूरत पड़े तो इसे कानूनी मान्यता देने के लिए महिला आरक्षण बिल की तरह संसद में चमचा समानता बिल भी पेश किया जाना चाहिए, पर भई इसके लिए नेताओं को थोड़ा निरपेक्ष्य होना होगा, आखिर वे भी किसी ना किसी की चमचई कर ही यहां पहुंचे हैं. अब इन नेताओं के पीछे भी चमचों की लंबी फौज है, जिसमें रिपोर्टर, कैमरामेन से लेकर स्ट्रिंगर, इलाके से छुटभैया से बाहुबली, किरानी से आईएएस आईपीएस तक सभी शामिल होते है जो अपनी अपनी हैसियत और नजदीकियों के हिसाब से चमचागिरी में शामिल होते है. पर अब वक्त आ गया है जब सभी चमचों को बराबरी का हक मिले. जिस तरह लोकतंत्र में जाति,धर्म, भाषा, क्षेत्र को लेकर किसी तरह के भेद को ख़त्म कर सभी को समान अधिकार दिया गया है, उसी तरह सभी चमचों को भी बगैर किसी भेद के बराबरी का दर्जा दिया जाए. चाहे वो बड़ा से बड़ा पत्रकार हो या कैमरामैन,बाहुबली हो या छुटभैया. और नेता इन सभी को बराबरी के स्तर पर चमचा ही माने कोई चमचा नंबर वन या दो नहीं.
पत्रकारिता में खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम कर रहे चमचों को शिकायत है कि चमचों की बूम पकड़ने वाली प्रजाति, कैमरा पकड़ने वाली प्रजाति पर ज्यादा हावी होने लगी है. पहली प्रजाति नेताओं को किनारे ले जाकर गुप चुप से सेटिंग गेटिंग कर लेती है और बेचारे कैमरा वाले चुपचाप सबकुछ देखते रहते है. चाहकर भी बेचारे कुछ कर नहीं पाते, मन मसोस कर रह जाते है कि उनके साथ के ही फलां ने चमचागिरी कर सफारी खरीद ली, फलां तो रोडछाप था पर अब सिंह साहब का आगे पीछे करते करते कितना आगे निकल गया और मैं वही सब करने के बावजूद हजार रूपये की नौकरी, वो भी कब चली जाए पता नहीं.
तो भईया सबका ख्याल करते हुए अब यही सही वक्त है जब सभी चमचों को बराबर का दर्जा दे दिया जाए ताकि किसी चमचे को अपने ही तरह के किसी चमचे से गिला शिकवा ना हो.
खैर, हम तो ठहरे पत्रकार. तो भैया कम से कम पत्रकारिता में चमचों के हित में आप भी अपनी आवाज बुलंद करे,जिससे इस प्रोफेशन में किसी को शिका यत ना हो और समानता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए कहें नो डिफरेंस बिटविन चमचा एंड चमचा का नारा बुलंद करें. क्यूंकि ना बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा है चमचैया ...

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