सुबह का वक्त है, चारो ओर हल्का अँधेरा रहा होगा। हलकी ठण्ड से शरीर कंपकपा रहा है, नींद में ही मैं अपनी रजाई से अपने मुँह को ढँक लेता हूँ।थोडी देर बाद एक ख्वाब की दस्तक होती है , एक ऐसा ख्वाब कि जो मेरी जिन्दगी का सबसे सुनहरा ख्वाब है।उसे सिर्फ़ ख्वाब ही क्यूँ कहूँ शायद जिन्दगी में उससे बड़ी चाहत मेरे लिए कुछ और नहीं। आधी नींद में हूँ पर दिल कह रहा है अभी मेरे साथ जिसके होने का एहसास है वो अब मेरे साथ है , हमेशा हमेशा के लिए मेरे साथ। दिल कि धड़कन उसके पास होने के एहसास भर से ही तेज़ हो रही है, ख्वाब के भीतर ही मैं कई और ख्वाब बुन रहा हूँ। पर ये क्या एकाएक कोई जोर जोर से मेरे नाम से पुकारने लगा...."भाई उठो उठो ... कितनी देर सोओगे अब उठ भी जाओ , सूरज निकल आया और ज़नाब अभी तक सो रहे हैं , ऑफिस नही जाना क्या" । दिलो-दिमाग में खूबसूरत एहसास लिए अनमने ढंग से मैं आँखें मलता उठ गया , ये सोचता हुआ कि थोडी देर बाद ही भाई उठाने आता तो क्या हो जाता , कम से कम मेरे ख्वाब तो अधूरे ना रहते। अब मेरी सबसे बड़ी चाहत एक बार फिर मुझसे उतनी ही दूर हो गई जितनी कि ख्वाबों में वो मेरे पास थी। रोज़ ही मैं उससे जुड़ी कोई ख्वाब जरुर देखता हूँ पर हमेशा ये ख्वाब अधूरे ही रह जाते हैं। क्यूंकि हर रोज़ ये ख्वाब तब ही टूट जाते हैं जब इन्हे पुरा होना होता है।
The worldwide economic crisis and Brexit
8 years ago
5 comments:
टूटना ही तो सपनों की विशेषता है और शायद उनका आकर्षण भी ।
घुघूती बासूती
jo pura ho jae sapna to kya baat hai
एक बेहतरीन अभिवक्ति, दिल के काफी करीब, शायद ये कहानी सब के साथ कभी न कभी ज़रूर घटी होगी. लिखते रहिये, अगले पोस्ट का इन्तेजार है.
बहुत खूब...
bahut khub bhut khub
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