स्कूल में पढता था तो बड़ा ही मस्तमौला था। कोई चिंता नही होती थी। जम के खेलता , तीन- चार घंटे पढता । बाकि वक्त में टीवी देखता । पर तब मैंने ये सोचा भी ना था की टीवी देखने का शौक मुझे पत्रकारिता की दुनिया में खीच लायेगा। तब में दुसरे बच्चो की तरह डॉक्टर , इंजिनियर बनने का खवाब बुनता था। लेकिन पत्रकारिता भी तब एक कोने में स्थान बनाने लगी । स्नातक के बाद मैंने ठान लिया की पत्रकारिता ही करूँगा । फिर क्या था मॉस कॉम किया । बाद में टी वी पत्रकारिता से जुड़ गया , पर अब महसूस होता है मैंने गलती की है । क्यूंकि यहाँ ना तो बेहतर कैरियर है , और ना ही सकून की जिन्दगी।
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