जाने माने पत्रकार अजित अंजुम ने अपनी फेसबुक पर ये लिखा की कैसे उनसे कुछ लड़कियों ने अपनी व्यथा सुनाई की मास कॉम की पढाई करने के बाद जब नौकरी की तलाश में वे मीडिया के वरिष्ठों से मिली तो उनका व्यवहार कैसा रहा. कई लोगों की प्रतिक्रियाएं भी आयीं जिन्होंने मीडिया में हो रहे कास्टिंग काउच पर खुल कर अपनी बात रखी. कईयों ने इशारों इशारों में उन लोगों की तरफ इशारा भी किया जो मीडिया में नारी शरीर के कुछ ज्यादा ही शौक़ीन हैं.
दरअसल मीडिया में इस तरह की बात नयी नहीं है. पर अब जब बहस हो रही है , इस बहस में कई ऐसे लोग भी शामिल हो जायेंगे जो इन गतिविधियों में लिप्त रहे हों. मीडिया सेक्टर में वर्क प्लेस पर लड़कियों का शोषण भी ठीक वैसे ही होता है जैसे दूसरे सेक्टर में. काम दिलाने के नाम पर लड़कियों से कम्प्रोमाइज करने को कहा जाता है, थोडा घुली मिलीं तो खुलम खुला डिमांड कर दिया जाता है, और ऐसे में ये थोड़ी भी फ्लेक्सिबल हुई तो बॉस की मन मांगी मुराद पूरी हो जाती है. कम्प्रोमाइज करने वाले को उसका मनमाफिक सामान मिल जाता है तो बॉस भी लट्टू होकर आगे पीछे घूमता फिरता है. पर उनका क्या जो इस गंदगी से दूर रहती हैं. बॉस के डिमांड को पूरा नहीं करतीं. उनके लिए तो बस शिफ्ट करो. जलालत सहो, मेहनत करो और मानसिक प्रताड़ना सहो.
खैर, मीडिया में अब ये सब कुछ हो रहा है तो इसके पीछे कम समय में शोर्टकट के जरिये सब कुछ पा लेने की चाहत है, जिसके लिए कोई कुछ भी कर सकने को तैयार बैठा है. तो दूसरी तरफ बॉस की इच्छा भी पूरी हो जाती है.
कुल मिला कर कहे तो अब मीडिया के इन पाखंडियों को बेनकाब करने की जरुरत है. सवाल ये भी उठता है कि अब जब मीडिया के भीतर से ही वैसे लोगों के खिलाफ आवाज़ उठने लगी है जो कास्टिंग काउच जैसे घृणित कार्यों में लिप्त हैं तो भला कोई उनका नाम खुल कर क्यूँ नहीं बताता.